निद्रालस भरा-भरा बियाबान अब न रहा । रास्ता आम है अब और काफी मशगूल । डैनों के बल फाटक के खंभों पर लटकीं काई पुती सीमेंट की फरिश्तिनें ताकती हैं ट्राफिक को । इतने जाते हैं, इतने आते मगर कोई आता नहीं ।
हिंदी समय में वीरेन डंगवाल की रचनाएँ