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कविता

कोठी-बियाबानी

वीरेन डंगवाल


निद्रालस भरा-भरा
बियाबान अब न रहा ।
रास्ता आम है अब
और काफी मशगूल ।
डैनों के बल फाटक के खंभों पर लटकीं
काई पुती सीमेंट की फरिश्तिनें
ताकती हैं ट्राफिक को ।
इतने जाते हैं, इतने आते
मगर कोई आता नहीं ।

 


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हिंदी समय में वीरेन डंगवाल की रचनाएँ